रक्षा के नाम पर युद्ध की शुरुआत होती है.
युद्ध का सबसे ज्यादा लाभ हथियार उद्योग को मिलता है.
युद्ध तेजी से बेकाबू हो जाता है.
युद्ध शुरू करना बहुत आसान है, किंतु उसे खत्म करना कठीन है.
युद्ध में ना केवल सैनिक ज़ख्मी होते हैं लेकिन उसमें बुजुर्ग और बच्चे भी घायल होते हैं.
युद्ध के घाव ना हि सिर्फ शरीर पर लेकीन दिल के अंदर भी गेहरे निशान छोड देते हैं.
मन चालाकी करने के हेतु इस्तेमाल की जानेवाली वस्तू नहीं है.
जीवन नचाई जानीवाली किसी कठपुतली की तरह नहीं है.
सागर, सैनिक छावनी के बीच खो जाने के लिये नहीं है.
आकाश, लड़ाकू विमानों से मिटाने के लिये नही है.
जो देश खून बहाना एक प्रकार का योगदान समझता हो उससे अच्छा हम एक ऐसे देश में रहना पसंद करेंगे जहाँ हम अपने आप को बुद्धिमत्ता पर गौरवान्वित महसूस कर सकें.
पांडित्य युद्ध का हथियार नहीं है.
पांडित्य कारोबार का साधन नहीं है.
विद्वत्ता सत्ता की दासी नहीं है.
हमें बनाना है, रक्षा करनी है, ऐसे रहने की जगह की, जहाँ हम स्वतंत्रता से विचार कर सकते हैं.
हम इस अहंकारी सत्ता के विरुद्ध संघर्ष करेंगे.